नारी, यह कोई समान्य शब्द नहीं बल्कि एक ऐसा सम्मान हैं जिसे देवत्व प्राप्त है। नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य हैं इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती है। जब भी घर में बेटी का जन्म होता हैं, तब यही कहा जाता है कि घर में लक्ष्मी आई है लेकिन आज के समाज ने नारी को वह सम्मान नहीं दिया जो जन्म जन्मान्तर से नारियों को प्राप्त हैं, हमेशा ही नारियों को कमजोर कहा जाता हैं और उन्हें एक अबला नारी के रूप में देखा जाता हैं और यह कहा जाता है कि नारी को शिक्षा की आवश्यक्ता ही नहीं, जबकि माँ सरस्वती जो विद्या की देवी हैं वो भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को ही शिक्षा के योग्य नहीं समझता, कहाँ से यह समाज नारी के लिए अबला, बेचारी जैसे शब्द लाता है एवं नारी को शिक्षा के योग्य नहीं मानता, जबकि किसी पुराण, किसी वेद में नारि की यह स्थिती नहीं जो इस समाज ने नारी के लिए तय की हैं। ऐसे में जरुरत हैं महिलाओं को अपनी शक्ति समझने की और एक होकर एक दुसरे के साथ खड़े होकर स्वयम को यह सम्मान दिलाने की, जो वास्तव में नारी के लिए बना हैं। महिला दिवस प्रति वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता हैं। लेकिन आज जो महिलाओं की हालत हैं वो किसी से नहीं छिपी हैं और ये हाल केवल भारत का नहीं, पूरी दुनिया का है। जहाँ नारी को उसका ओहदा नहीं मिला हैं। एक दिन उसके नाम कर देने से कर्तव्य पूरा नहीं होता। आज के समय में नारी को उसके अस्तित्व एवं अस्मिता के लिए प्रतिपल लड़ना पड़ता हैं उसे बदलने की जरुरत हैं जिसके लिए सबसे पहले कन्या को जीवन और उसके बाद शिक्षा का अधिकार मिलना जरूरी हैं तब ही इस देश में महिला की स्थिती में सुधार आएगा।
लेखिका
कुसुम माथुर डायरेक्टर
दिल्ली पब्लिक किड्स स्कूल
सी 7/92 पार्थसार्थी कॉलोनी रामेश्वरम एक्सटेंशन मंदिर SBI के पीछे पेबल वे रोड बगमुग़लिया भोपाल