भोपाल। जिनके नाम कई कीर्तिमान, जिन्हें सुनने को विरोधी भी का लालायित, जो विद्वता की पराकाष्ठा, वे किसी पद को स्पर्श भर कर लें तो पद ही गौरवान्वित हो जाए। ऐसे किसी नेता अथवा जनप्रतिनिधि के बारे में सोचने को कहा जाए तो फिर मन मस्तिष्क में एक नाम सबसे पहले उभर कर आता है। वह नाम है श्रीमती सुषमा स्वराज। स्वर्गीय सुषमा स्वराज की विशेषताओं को लिखने का प्रयास भी किया जाए तो अनेक ग्रंथ रचे जा सकते हैं। क्योंकि वे एक बहुमुखी प्रतिभा रहीं। जिसके चलते कभी यह तय ही ना किया जा सका कि स्वर्गीय श्रीमती सुषमा स्वराज में अच्छी इंसान, अच्छी नेता, कुशल वक्ता, प्रकांड विद्वान आदि होने में सर्वाधिक बड़ा गुण कौन सा था। क्योंकि उनके भीतर विशेषताएं और उत्कृष्टताएं मानो असीमित रूप से भरी हुई थीं। मसलन श्रीमती सुषमा स्वराज जब स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में इस देश की विदेश मंत्री बनाई गईं तो यह कीर्तिमान स्थापित हुआ कि वे भारत की पहली विदेश मंत्री के रूप में स्थापित हुईं।
दिल्ली जैसे बेहद महत्वपूर्ण और जटिल प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री होने का कीर्तिमान भी स्वर्गीय सुषमा स्वराज के नाम ही जाता है। स्पष्ट और मुखर होने के साथ-साथ तार्किक वाकशैली के चलते जब उन्हें भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया, तब एक बार फिर यह इतिहास रचा हुआ कि श्रीमती सुषमा स्वराज भारतीय राजनीतिक दलों में ऐसी पहली महिला नेत्री रहीं, जिन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद पर आसीन किया गया। उनके हिस्से में उपरोक्त कीर्तिमान और उपलब्धियां इसलिए आए, क्योंकि सुषमा जी के भीतर इस देश के लिए और खासकर महिलाओं के लिए कुछ बेहतर कर गुजरने का जज्बा लगातार बना रहा। भाजपा ने उनकी इस आंतरिक तड़प को नजदीक से महसूस किया। फल स्वरुप में लगातार एक के बाद एक कामयाबियां स्थापित करती आगे बढ़ती रहीं और खुद को एक बेहतर नेता, बेहतर जनप्रतिनिधि साबित करके दिखा दिया। उनके हिस्से में भाजपा जैसी बेहद अनुशासित और अपनी नीतियों के प्रति अटल रहने वाली भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल का नेता होने का गौरव भी समाहित है। उस समय जबकि भाजपा में अटल बिहारी बाजपेई, मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे एक से बढ़कर एक मूर्धन्य विद्वान नेताओं की बड़ी कतार मौजूद थी। तब उन्हें संसद में नेता प्रतिपक्ष का दायित्व निभाने को मिला। तत्समय आलोचकों को लग रहा था कि उपरोक्त वरिष्ठ नेताओं के चलते श्रीमती सुषमा स्वराज नेता प्रतिपक्ष के पद पर शायद ही बेहतर प्रदर्शन कर पाएं। लेकिन उन्होंने एक बार फिर अपनी योग्यता का लोहा उस वक्त मनवा कर दिखाया जब पूरे सदन ने उनके तार्किक, स्पष्ट वक्तव्यों को एक प्रकार से मंत्रमुग्ध होकर से सुना।
ऐसे अनेक अवसर आए जब श्रीमती सुषमा स्वराज तत्कालीन सरकारों के खिलाफ बेहद मुखर होकर बोलीं। तब सत्ता पक्ष के लोगों द्वारा भी उन्हें पूरे ध्यान से ससम्मान सुना गया। यहां तक कि अनेकों बार उनके भाषण संपन्न हो जाने के बाद केवल भाजपा ही नहीं बल्कि विरोधी दलों के बड़े-बड़े नेताओं द्वारा उनकी वाक शैली को मुक्त कंठ से सराहा गया। अतः यह लिखने में कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उक्त पद पाकर श्रीमती सुषमा स्वराज गौरवान्वित हुई होंगी। बल्कि यह लिखना उचित रहेगा कि उनके द्वारा इस पद को स्वीकार किए जाने से उक्त पद की गरिमा ही असीमित रूप से बढ़ गई। जब केंद्र में एनडीए की सरकार स्थापित हुई तो उन्हें उस सरकार का कैबिनेट मंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ, जिसके प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई भी विद्वता के मामले में अति विशिष्ट योग्यता रखते थे। जैसा कि पूर्व से ही भरोसा था, यहां भी उन्होंने देश, दल और लोगों को कतई निराश नहीं किया। ऐसा कतई नहीं है कि सुषमा स्वराज एक महिला थीं, इसलिए उन्हें भारतीय जनता पार्टी में तरक्की के सहज रास्ते सुलभ गए होंगे।
सत्यता तो यह है कि श्रीमती सुषमा स्वराज की सार्वजनिक जनसेवा की यात्रा की शुरुआत ही एक बड़े संघर्ष के साथ होती है। 70 के दशक में जब देश आपातकाल की असहनीय मार से कराह रहा था और जयप्रकाश आंदोलन चरमोत्कर्ष पर था। तब श्रीमती सुषमा स्वराज एक कार्यकर्ता के रूप में इस आंदोलन का हिस्सा बनीं। बाद में नवगठित जनता पार्टी का अटूट हिस्सा बन गईं। आपातकाल को नेस्तनाबूद करने के लिए चुनाव लड़ना आवश्यक हुआ तो आप चुनावों से रूबरू भी हुईं। नतीजतन विधायक बनीं और हरियाणा की चौधरी देवी लाल की सरकार में उन्हें मंत्री बनने का प्रथम अवसर प्राप्त हुआ। स्पष्ट कर दें कि तब उनकी उम्र केवल 25 साल हुआ करती थी। इतनी कम उम्र की प्रथम महिला विधायक और मंत्री बनने का तत्कालीन कीर्तिमान भी श्रीमती सुषमा स्वराज के हिस्से में ही दर्ज है। बस यही वह समय था जब उनकी योग्यता पर संघ और भाजपा के शीर्ष नेताओं की नजर पड़ी। 1980 में इस पार्टी के गठित होते ही जैसे श्रीमती सुषमा स्वराज की जन सेवा यात्रा को नए पंख लग गए। अनेक प्रतिपूर्ण हालातों के बावजूद संगठन को उनके भीतर सकारात्मक संभावनाएं दिखाई देने लगीं। यही वजह है कि जब कांग्रेस की आलाकमान श्रीमती सोनिया गांधी को कर्नाटक के बेल्लारी लोकसभा क्षेत्र में चुनौती देने की बात आई तो एक स्वर में सबने श्रीमती सुषमा स्वराज का नाम तय कर दिया। यहां भी उन्होंने किसी को निराश नहीं किया।
तत्कालीन बड़े-बड़े नेता, मीडिया कर्मी और बुद्धिजीवी यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए थे कि सुषमा स्वराज कर्नाटक की जनता से आत्मीय संपर्क स्थापित करने हेतु उनसे कन्नड़ भाषा में ही बात कर रही थीं। वहां की स्थानीय भाषा में ही उन्होंने अनेक जनसभाओं को संबोधित भी किया। यह उनकी काबिलियत का ही परिणाम था कि श्रीमती सुषमा स्वराज और सोनिया गांधी को मतों में केवल 7 प्रतिशत का अंतर शेष रह गया था। ऐसी महान विदुषी श्रीमती सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश के विदिशा लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी रहीं। यह हमारे लिए गौरव का विषय है। आज भी विदिशा सहित समूचे मध्यप्रदेश की जनता जनार्दन उन्हें बेहद विनम्र और सरल स्वभाव की शख्सियत के रूप में स्मृत बनाए हुए है। ऐसी महान व्यक्तित्व की धनी स्वर्गीय श्रीमती सुषमा स्वराज को उनकी पुण्यतिथि 6 अगस्त के दिन शत शत नमन।
लेखक-स्वतंत्र पत्रकार