हनुमान जी की जयंती के अवसर पर विशेष आलेख

राम काज कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम -डॉ. राघवेंद्र शर्मा

 

हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।

 राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम।।

सुंदरकांड का बड़ा ही उत्कृष्ट प्रसंग है, जब हनुमान जी माता सीता का पता लगाने के लिए समुद्र को लांघने के क्रम में हैं। इसी बीच मैनाक पर्वत उनसे विश्राम करने का आग्रह करता है। तब हनुमान जी बड़े ही प्रेम से स्वर्ण के समान दमकते हुए उस मैनाक पर्वत को स्पर्श करते हुए उसके आग्रह का मान रखते हैं। उससे यह कहते हैं कि जब तक मैं प्रभु श्री राम के कार्य को सिद्ध नहीं कर देता तब तक भला विश्राम कैसे कर सकता हूं? इतना कहकर श्री हनुमान जी अपने लक्ष्य की ओर बढ़ जाते हैं। यह प्रसंग पवित्र लक्ष्य प्राप्ति का इतना सुंदर संदेश है, जिसे अपना कर श्रेष्ठ व्यक्तित्व सदैव ही विश्व के सामने आदर्श स्थापित करते रहे हैं। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का आचरण भी कुछ ऐसा ही है। मैंने अनेक अवसर पर यह महसूस भी किया है कि जब जब श्री मोदी से पूछा गया कि वे इतना कार्य कैसे कर लेते हैं? कैसे बगैर अवकाश लिए निरंतर देश सेवा करते चले जाते हैं? उन्हें थकावट क्यों नहीं होती और अधिक उत्कृष्ट कार्य करने के लिए क्या उन्हें अतिरिक्त उर्जा संग्रहित करने के लिए विश्राम नहीं करना चाहिए? तब श्री मोदी इसी चौपाई का बखान करते हुए कहते हैं कि

राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम ?

यह बात सही भी है कि एक साधारण मनुष्य की अपेक्षा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी बहुत कम विश्राम करते हैं। यह भी दिन के उजाले की तरह सत्य है कि वे अपनी अधिकतम क्षमता के साथ देश सेवा में संलग्न बने रहते हैं। उनकी इस कार्य प्रणाली को देखकर ऐसा लगता है मानो श्री मोदी के अंदर एक तड़प है। तड़प इस बात को लेकर कि हमारे देश को आजाद हुए 75 साल से अधिक हुए। लेकिन महात्मा गांधी ने जो राम राज्य का सपना देखा था, वह हम अभी तक स्थापित नहीं कर पाए। शायद यही वजह है कि जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री बने और अब जब वे देश के प्रधानमंत्री हैं, तब उन्हें ऐसा लगता है कि हम पहले ही काफी विलंब कर चुके हैं। देश को रामराज की प्रक्रिया में ढालने के लिए हमें बेहद तेज गति की आवश्यकता है। कारण स्पष्ट है, पूरा विश्व अशांति का टापू बनता चला जा रहा है। वैश्विक स्तर पर एक भी नेता ऐसा दिखाई नहीं देता जो इस अशांति को रोक सके और अपनी पूरी क्षमता के साथ बढ़ती जा रही आपाधापी को नियंत्रित कर पाए। ऐसे में सभी की निगाह अब नरेंद्र मोदी की ओर आशाओं की संभावनाओं के साथ आकर्षित होने लगी है। यह इसलिए दिखाई देता है क्योंकि श्री नरेंद्र मोदी ने भारत देश को ही नहीं अपितु पूरे विश्व को वसुधैव कुटुंबकम के बोध वाक्य में बांधने का साहस दिखाया है और उसे अपने आचार व्यवहार में शामिल कर रखा है। जब भी वैश्विक स्तर पर कोई आपदा आती है, वह दैवीय हो या फिर मानव जनित, श्री मोदी सदैव ही उसके निराकरण हेतु सक्रिय बने रहते हैं और सभी पक्षों से वार्ता करने का विकल्प सामने बनाए रखते हैं। फल स्वरुप उनकी कार्यशैली एक निष्पक्ष वैश्विक नेता की बनती जा रही है। जब उनके प्रति विश्व का यह भाव निर्मित होता है तब निसंदेह श्री मोदी के भीतर दायित्व का बोध और अधिक व्यापक होना स्वाभाविक है। यह ठीक वैसा ही है जैसे हनुमान जी यह मानते थे कि मुझे हर हाल में माता सीता का पता लगाना ही है। इसके लिए कभी उन्हें राक्षसी प्रवृत्तियों से जूझना है तो कभी पथभ्रष्ट हो चुकी शक्तियों पर आघात भी करना है। इस बात की चिंता किए बगैर कि लोग क्या कहेंगे, वह स्वयं को ब्रह्म पास में बंधवा भी लेते हैं और लंका निवासियों को अपने ऊपर अत्याचार करने का आंशिक अवसर प्रदान करते हैं। ताकि लंका दहन के लिए अपनी पूंछ में आग लगाने के लिए उन्हें प्रेरित किया जा सके और ऐसा हुआ भी। श्री मोदी की ठीक ऐसी ही कार्य प्रणाली है। उनके कई कदम प्रारंभ में अल्प बुद्धि के लोग समझ ही नहीं पाते। बस पक्ष और विपक्ष को आधार बनाकर उनकी निंदा शुरू कर देते हैं। कई बार उन पर इतने निकृष्ट शाब्दिक हमले होते हैं कि उनकी जगह पर यदि कोई साधारण व्यक्ति उन्हें सुन ले तो फिर ऐसे व्यक्ति का विचलित हो जाना साधारण बात है। लेकिन श्री मोदी के स्वभाव में विचलित होना जैसे अपना स्थान ही नहीं रखता। उन्हें नीच, कफन का सौदागर, खून का व्यापारी, और न जाने क्या-क्या कहा जाता है। लेकिन वह इन शब्द बाणों की चिंता ना करते हुए आगे और केवल आगे बढ़ते चले जाते हैं । कारण वही है कि उन्हें कम समय में अपने देश को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक व्यवस्था के रूप में स्थापित करना है। संभवत यह भी रामराज की स्थापना का ही एक पड़ाव है। यह तो हम सब जानते ही हैं कि उन्होंने अब ऊंच नीच की दीवारों को ध्वस्त करते हुए जातियों के बंधन को तोड़ कर सनातन को एक सूत्र में बांधने का कार्य प्रारंभ कर दिया है। ठीक उस तरह जैसे श्री हनुमान जी माता सीता का पता प्राप्त करने में भक्ति और भक्त को एक सूत्र में बांधते चले जाते हैं।

वे हनुमान जी ही तो हैं जिन्हें प्रभु श्री राम के बैकुंठ चले जाने के बाद भी पृथ्वी पर श्री राम नाम के प्रभाव को अक्षुण्ण बनाए रखने का दायित्व मिला हुआ है और वे पूरी तन्मयता के साथ अपने दायित्व के निर्वहन में संलग्न बने हुए हैं। कहते हैं जहां भी श्री राम नाम का प्रसंग होता है वहां श्री हनुमान जी की उपस्थिति बनी रहती है। श्री मोदी उन्हीं के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए स्वयं को रामराज की स्थापना का संवाहक बनाए हुए हैं। जैसा कि रामराज में स्थापित था कि वहां कोई भूखा नहीं सोता था, सो श्री मोदी ने देश के 80 करोड लोगों के भोजन की निशुल्क व्यवस्था बनाए रखी है। महिलाएं निर्विघ्न धर्म आचरण का पालन कर सकें, इसके लिए उन्हें अलग से आत्मनिर्भर बनाने के अनेक प्रोजेक्ट प्रचलन में हैं। आसुरी प्रवृत्ति के लोगों में दैवीय शक्तियों के प्रति भय बना रहे, इसके लिए देश को रक्षा क्षेत्र में निरंतर आत्मनिर्भर किया जा रहा है। हमने लंका कांड में पढ़ा है, जब श्री राम लक्ष्मण को नाग पास में बांधा गया तब श्री हनुमान जी गरुड़ जी को लेकर आए। जब श्री लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो वे जड़ी बूटियां का पर्वत ही उठा लाए। इन आदर्शों का अनुसरण भी श्री मोदी की कार्यप्रणाली में स्पष्ट दिखाई देता है। जब-जब देश को कोरोना महामारी जैसी आपदाएं ग्रसने को तत्पर होती हैं अथवा विधर्मियों द्वारा सनातन पर प्रहार किए जाते हैं, तब तक श्री मोदी उक्त बीमारियों की काट ढूंढने में सफल रहते हैं। कोरोना महामारी के दौरान युद्ध स्तर पर वैक्सीन निर्माण के क्षेत्र में सफलता हासिल करना एक ऐसा ही उद्यम है। इसके अलावा यह भी कोई छोटी बाद नहीं है कि आजादी के पहले और बात में सनातन धर्म पर आघात होते रहे। श्री राम मंदिर और प्रभु श्री राम को काल्पनिक कहकर देश को शर्मिंदा किया जाता रहा। तब श्री मोदी ने आलोचनाओं की परवाह न करते हुए देश की मूल आत्मा सनातन को एकजुट किया और अदालत का निर्णय आते ही अयोध्या में श्री राम राज्य की स्थापना में निर्णायक कदम बढ़ा दिए। अब वहां प्रभु श्री राम का भव्य मंदिर है, जिसमें उनकी बाल स्वरूप प्रतिमा भक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है। बस यही वह महत्वपूर्ण उपलब्धि है जो हर भारतीय के मन के विश्वास को दृढ़ता प्रदान करती है, कि हां अब सही मायने में रामराज की स्थापना का दौर जोर पकड़ चुका है। लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि यह तो अभी ट्रेलर है। आशय स्पष्ट है कि अभी भारतीय गौरव के पुनर्स्थापना का पहला चरण ही प्राप्त हुआ है। अपने देश को विश्व गुरु के पद पर स्थापित करने के लिए एक मजबूत नेतृत्व में लंबी लड़ाई लड़ी जाना अभी बाकी है। और वह मजबूत नेतृत्व देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का ही हो सकता है, इसमें संदेह नहीं होना चाहिए। आवश्यकता है श्री राम भक्त हनुमान जी की जयंती के पावन अवसर पर हम यह संकल्प लें कि भारत में रामराज की स्थापना का संकल्प लेकर निरंतर आगे बढ़ रहे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम और अधिक ताकत के साथ एकजुट हो कर उन्हें शक्ति प्रदान करें। ताकि यह देश अपने खोए हुए वैभव को पुनः प्राप्त कर सके। सभी देशवासियों को श्री हनुमान जयंती की ढेर सारी शुभकामनाएं।

 

लेखक-स्वतंत्र पत्रकार है

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