डीप स्टेट : दुनिया के लिए खतरे का संकेत – डॉ. राघवेन्द्र शर्मा

डीप स्टेट क्या है एवं दुनिया को अपने हिसाब से क्यों चलना चाहते हैं यह भविष्य को लेकर दुनिया में एक चर्चा और चिंतन का विषय बना है तेजी से बढ़ने वाला भारत इस डीप स्टेट के टारगेट पर है। भारत में अपने एजेंटों के माध्यम से उन्हें देश विरोधी गतिविधियों में संलग्न बनाए रखता है। यही नहीं, देश विरोधी गतिविधियों में संलग्न सैकड़ो हजारों एनजीओ को भी इसी डीप स्टेट द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। ताकि यहां पर राजनैतिक और प्रशासनिक अस्थिरता का माहौल बनाए रखा जा सके। और यह सब इसलिए, ताकि वैश्विक स्तर पर अपनी योग्यता का लोहा मनवा रहे तथा विकसित देशों को कड़ी स्पर्धा देने जा रहे भारत को वापस पीछे की ओर धकेला जा सके। जाहिर है, यह तभी संभव है जब देश की श्री नरेंद्र मोदी सरकार को जड़ से उखाड़ फेंका जा सके। तो फिर सवाल यह उठता है कि हम जिस डीप स्टेट की बात कर रहे हैं दरअसल वह कौन सी बला है तथा उसकी भारत से और भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से क्या दुश्मनी है। तो पहले बात करते हैं डीप स्टेट के बारे में। वास्तव में यह विश्व स्तर के उन चुनिंदा धनाढ्य लोगों का गैंग है जो पूरी दुनिया की आधी संपत्ति पर कब्जा जमाए बैठे हैं। इनमें से एक एक मेंबर की दौलत इतनी अधिक है कि वह विश्व के कई देशों की जीडीपी से भी ज्यादा अहमियत रखती है। जिसके बलबूते पर यह लोग पूरी दुनिया की अर्थ व्यवस्था को अपने मन माफिक नियंत्रित करते रहते हैं। फिर इसके लिए इन्हें कोई बड़ा अनिष्ट ही कारित क्यों ना करना पड़े। इस डीप स्टेट और इसके कर्ता धर्ताओं की कारगुज़ारियों पर गंभीरता से गौर करेंगे तो पता चलेगा कि इराक, यमन, सीरिया और लीबिया जैसे देशों की तबाही के लिए यही सब जिम्मेदार हैं।

बहुत स्पष्ट मत है कि जहां की सरकारें इनके मन माफिक काम नहीं करतीं, इनकी पसंद के कानून नहीं बनातीं, वहां तख्ता पलट तक करा दिया जाता है। यह तो किसी से छुपा ही नहीं है कि इस डीप स्टेट के पूंजीपति अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका और यूरोप में सरकारें भी संचालित करते हैं। अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए इन्हीं के द्वारा अफ्रीकी देशों में उथल पुथल पैदा की जाती है। दुनिया के जाने-माने विश्लेषकों ने एक से अधिक बार ये रहस्योद्घाटन किये हैं कि पाकिस्तान में सरकारें बनाने बिगाड़ने का षड्यंत्र भी इसी गैंग द्वारा अमेरिकी सरकार की मदद से रचा जाता रहा है। यही नहीं, उसकी अनियंत्रित अर्थव्यवस्था का लाभ उठाते हुए वहां की सत्ता पर काबिज हुक्मरानों को इस बात के लिए विवश किया जाता है कि वे लगातार भारत के प्रति बिष वमन करते रहें। भारत में भी इसी स्तर के प्रयास सदैव बने रहते हैं। यह और बात है कि यहां इनकी मंशा पूरी नहीं हो पा रही। क्योंकि भारत में एक मजबूत सरकार स्थापित है तथा उसका नियंत्रण देश के लिए मर मिटने को तत्पर रहने वाले श्री नरेंद्र मोदी जैसे देशभक्त प्रधानमंत्री के हाथ में बना हुआ है। फल स्वरुप इनका बौखलाना तथा भारत के विरुद्ध और अधिक सक्रिय हो जाना लाजिमी है। लंदन में डीप स्टेट के दो प्रमुख सदस्यों का भारत विरोधियों के साथ मिलना इसी सक्रियता के रूप में देखा जाना चाहिए।

डीप स्टेट की इच्छा है, भारत की जनता भी आर्थिक रूप से इनकी गुलामी करने को मजबूर हो। हम महंगी दरों पर इनका घटिया सामान खरीदने के लिए बाध्य हों। अंततः यह हमारा स्थाई रुप से शोषण कर पाएं। एक प्रकार से देखें तो डीप स्टेट उस ईस्ट इंडिया कंपनी का मॉडिफाइड वर्जन ही है, जो व्यापारी बनकर भारत में आई और फिर सालों तक यहां शासक बनकर बैठी रही। इसी तरह की गैंग डीप स्टेट में सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका की हथियार लॉबी का है, जो वहां की सरकार को अपनी कठपुतली बनाकर रखे हुए हैं। यही कारण है कि अमेरिका में हजारों लोग अंधाधुंध गोलीबारी का शिकार होते हैं। विशेषकर स्कूलों में अबोध बालकों की हत्याओं के बाद वहां की सरकारें शस्त्र लाइसेंस की बात करती तो हैं, लेकिन उसे लागू नहीं कर पातीं। क्योंकि इस हथियार लॉबी का अप्रत्यक्ष नियंत्रण वहां की सरकारों पर बना रहता है।

दरअसल यही हथियार लॉबी पूरे विश्व में युद्ध का माहौल बनाए हुए है। जरा याद करें, पहले वियतनाम विनाश का केंद्र बना। वहां मारकाट थमी तो अफ्रीकन देशों में लड़ाई शुरू हो गई। इराक में जैसे तैसे युद्ध की आग ठंडी पड़ी तो सीरिया और यमन जैसे देशों में और तेजी के साथ भड़क उठी तथा लीबिया के तानाशाह गद्दाफी का खात्मा किया गया। इसी श्रृंखला में अफगानिस्तान भी निशाना बना‌। लंबे समय तक अमेरिका की हथियार लॉबी ने अफ़गानियों का खून पिया और जब वहां से फैलारा समेटना पड़ गया तो अब यूक्रेन हथियार आपूर्ति का केंद्र बना हुआ है। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यूक्रेन में विनाश तभी थमेगा जब इस हथियार लॉबी को विश्व में नया युद्ध क्षेत्र और हथियारों का नया ग्राहक उपलब्ध हो जाएगा‌। डीप स्टेट पर काबिज इन हथियार के सौदागरों को यह भी नहीं सुहाता कि कोई और देश सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भर बने और दूसरे देशों को हथियारों की आपूर्ति करें। चूंकि रूस हथियारों के क्षेत्र में इस गैंग के लिए चुनौतियां पैदा करता रहता है। सो उसे लंबे समय से यूक्रेन के साथ उलझा कर रखा गया है तथा हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि उसे चीन से हथियार खरीदने पड़ रहे हैं।

अब जब भारत रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो रहा है तथा वह दूसरे देशों को शस्त्र आपूर्ति भी करने लग गया है‌। हर दिन यहां रॉकेट, मिसाइल, टैंक, हेवी लाइट गन, युद्धक विमान, युद्धपोत आदि के नए-नए परीक्षण हो रहे हैं। इसी के साथ भारत वैश्विक क्षितिज पर एक नए शस्त्र निर्यातक के रूप में तेजी से स्थापित हो रहा है। भारत की निर्भरता अमेरिका जैसे देशों पर कम हो रही है। तब इन लोगों की आंख में हमारी सरकार और हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी किरकिरी बने हुए हैं। अतः भारत में अस्थिरता पैदा करने के षड्यंत्र विदेश में रचे जाते रहते हैं। भारत विरोधी संगठनों, आतंकवादियों, सेवा का मुखौटा लगाए हुए एनजीओ, आंदोलन जीवियों को आर्थिक सहायता और भारत विरोधी साहित्य उपलब्ध कराए जाते हैं। खेद की बात तो यह है कि अपनी मंशा पूर्ति के लिए ओपन सोसाइटी फाउंडेशन, राकफेलर फाउंडेशन, बिल गेट्स फाउंडेशन के माध्यम से भारत में सैकड़ों एनजीओ पहले ही खुलवाए जा चुके हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि विदेशी चंदा पाने वाले अनेक एनजीओ भारत के कई नेताओं, विधायकों, सांसदों मंत्रियों, नौकरशाहों, बुद्धिजीवियों, उनके परिवारजनों द्वारा अथवा उनके समर्थकों द्वारा संदिग्ध रूप से संचालित किए जा रहे हैं। इनके माध्यम से आंदोलन जीवियों को आगे करके कभी सड़कें जाम कराई जाती हैं, कहीं रेलें रोकी जाती हैं, देश की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने के प्रयास होते हैं। प्रमाण यह कि आंदोलनों के नाम पर फैलाई जाने वाली अफरा-तफरी में कई बार देश विरोधी नारे खुले तौर पर देखने को मिल जाते हैं। ऐसे तथाकथित आंदोलनों में चेहरा भारतीय आंदोलन जीवियों का ही होता है। लेकिन पीछे असल ताकत भारत विरोधी तत्वों की लगी रहती है। ऐसे संगठनों और मतलब परस्त लोगों को विदेशों से भर भरकर पैसा मिलता है। जाहिर है, इसके बदले में भारत विरोधी ताकतें यहां अस्थिरता भी चाहती हैं। क्योंकि इसी से उनका भला होने वाला है।

लेकिन देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी इन की राह का सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहे हैं। रक्षा, अंतरिक्ष, और निर्माण क्षेत्र में उन्होंने भारत को निरंतर आगे बढ़ाने का बीड़ा उठा रखा है। सिंचाई, पर्यावरण, परिवहन, विद्युतीकरण के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट भारत को विकसित एवं आत्मनिर्भर बना रहे हैं। इन्हें रोकने के लिए कभी पर्यावरण के नाम पर विकास संबंधी परियोजनाओं में अड़ंगे डाले जाते हैं। असफल रहने पर सर्वोच्च न्यायालय तक में याचिकाएं दायर कर दी जाती हैं, ताकि देश के विकास को लंबे समय तक अवरुद्ध किया जा सके। हद तो यह है कि विदेशी चंदों पर भारत में ही पल रहे अनेक एनजीओ धर्म परिवर्तन जैसे पाप पूर्ण कार्य भी कर रहे हैं। यह बात और है कि भारत सरकार ने अब इन्हें पहचाना शुरू कर दिया है। फल स्वरुप हजारों गैर सरकारी संगठनों के लाइसेंस रद्द किए जा चुके हैं और अन्यों का निरस्तीकरण किया जाना प्रक्रिया में बना हुआ है।

जाहिर है देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी अपनी कार्य प्रणाली से डीप स्टेट जैसे संगठनों की आंख में किरकिरी बने हुए हैं। लेकिन यह भी जग जाहिर है कि श्री मोदी एक अलग मिट्टी के बने हुए देशभक्त इंसान हैं। वे किसी के दबाव में नहीं आते। उन्हें जहां भारत का हित दिखाई देता है, आयत और निर्यात भी उसी देश के साथ करते हैं। फिर भले ही भारत विरोधी ताकतें कुछ भी सोचती रहें। यह भी सही है कि किसी भी देश की सरकार अथवा वहां का प्रधानमंत्री अकेले इस व्यापक परिक्षेत्र पर अधिक समय तक नियंत्रण नहीं बनाए रख सकता। इसके लिए हम देशवासियों का भी दायित्ववान होना आवश्यक है। अतः जरूरी है कि हम देश के दुश्मनों से लोहा लेने के लिए सदैव ही तत्पर अपने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को ताकत प्रदान करने में किसी भी प्रकार की कसर शेष न छोड़ें।

लेखक- स्व़तंत्र पत्रकार हैं

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