भोपाल।बीते रोज जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह घोषणा की, कि किसानों को मुसीबत की घड़ी में अकेला नहीं छोड़ा जाएगा। सरकार उनके और उनके परिवारों के साथ खड़ी है। तब वो दिन याद आ गए जब दिल्ली के बाहरी इलाके में हजारों किसानों का जमघट कम से कम 3 राज्यों का जनजीवन बुरी तरह प्रभावित किए हुए था। किसान संगठनों के नेता यह प्रचारित करने में लगभग सफल साबित हो चुके थे कि केंद्र की भाजपा सरकार किसान विरोधी है। अपने राजनीतिक फायदों से युक्त आरोपों को प्रामाणिकता प्रदान करने के लिए उक्त किसान संगठनों ने यह दावा किया कि भाजपा सरकार गलत थी तभी उसे कृषि सुधार विधेयक वापस लेना पड़ा। तत्कालिक तौर पर बुद्धिजीवियों का बहुत बड़ा वर्ग यह मान भी बैठा कि भाजपा की केंद्र सरकार से कोई तो चूक हुई है। वर्ना वह कृषि सुधार के नाम पर लाए हुए विधेयक को वापस क्यों लेती? तत्समय मीडिया के 1 वर्ग ने भी यह साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि उक्त कानून लाकर भाजपा की केंद्र सरकार किसानों का सत्यानाश करने जा रही थी। इन कतिपय मीडिया घरानों ने आंदोलन के नाम पर जनजीवन अस्त व्यस्त करने और कानून व्यवस्था के समक्ष चुनौती पूर्ण हालात पैदा करने वाले स्वयंभू किसान नेताओं का यह कहकर आभार भी जताया था कि उनकी जागरूकता के चलते किसान बर्बाद होने से बच गए। लेकिन अब जब मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार का आचरण देखते हैं तो लगता है भाजपा और उसकी सरकार किसान विरोधी हो ही नहीं सकती। कारण साफ है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रदेश स्तर पर ही सही, अंततः तो भाजपा सरकार का ही नेतृत्व कर रहे हैं। उनकी कार्यप्रणाली यह सोचने को विवश करती है कि चाहे फसल अतिवृष्टि से तबाह हो, या फिर सूखे से बर्बाद हो गई हो, अथवा ओलावृष्टि के चलते उसे पाला मार गया हो। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार सदैव ही किसानों के इस दुख में बराबर की भागीदार नजर आती है। उदाहरण के लिए- हमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस निर्णय पर गौर करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा कि पूरे 6 महीने की किसानी मेहनत पर जो ओले पड़े हैं, उस श्रम बर्बादी की क्षतिपूर्ति तो कोई नहीं कर सकता। लेकिन किसानों का जो आर्थिक नुकसान हुआ है उसे किसानों की किस्मत नहीं बनने दिया जाएगा। शिवराज सिंह चौहान ने सरकारी अमले को यह निर्देश भी जारी कर दिए हैं कि जहां-जहां ओलावृष्टि हो रही है, तेज आंधी चल रही है, अनापेक्षित बारिश हो रही है। वहां वहां शासन के आदेशों की प्रतीक्षा ना की जाए। बल्कि जमीनी आमला प्रत्येक आपदा का सर्वेक्षण करने के लिए तैयार रहे। किसान का कितना नुकसान हुआ है और उसे सरकारी खजाने से अथवा बीमा कंपनी से कितना मुआवजा दिया जाना है, इस बात की चिंता करना भी सर्वेक्षण कर्ताओं का काम नहीं है। बस उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि उनके सर्वे से किसान को मिलने वाली मुआवजा राशि नकारात्मक रूप से प्रभावित ना हो। उनके नुकसान का पूरा आकलन होना चाहिए। सरकार का प्रयास रहेगा कि खेती किसानी में हुई तबाही का अधिकतम मुआवजा किसान परिवार तक पहुंच जाए। इस सरकार की अनौपचारिक वार्ताओं और कार्यप्रणाली का अध्ययन किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि खेती किसानी को लाभ का धंधा बनाया जाना भाजपा सरकार का नीतिगत मसला है। यही वजह है कि खाद, बीज, सिंचाई आदि मसलों को लेकर भी शिवराज सरकार बेहद सतर्क नजर आई और अब जब प्राकृतिक आपदा ने किसानों को संकट में डाल दिया है तब किसानों से ज्यादा शिवराज सरकार चिंतित नजर आ रही है। अच्छी बात ही है कि जिन जिन इलाकों में पहले दौर में ओले पड़े थे, वहां राजस्व और कृषि विभाग के अमले द्वारा सर्वे शुरू किया जा चुका है। वहीं तहसीलदार, एसडीएम और कलेक्टर स्तर के अधिकारियों द्वारा सरकार के निर्देशानुसार किसानों को यह सांत्वना दी जा रही है कि वह आर्थिक नुकसान को लेकर विचलित ना हों। क्योंकि मध्यप्रदेश शासन आपके अधिकतम नुकसान का आकलन कर उसकी यथासंभव भरपाई करने का मन बना चुकी है। निसंदेह इससे किसान समुदाय को काफी हद तक ढाढस बंधा है। यह बात सही है कि इस बर्बादी से उपजे किसानों के दुख को कोई भी कम नहीं कर सकता। क्योंकि फसल किसी भी प्रकार की हो, उसे पैदा करने और संरक्षित करने में पूरा किसान परिवार आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से अपने को पूरी तरह झोंक देता है। जब वही फसल सर्वनाश को प्राप्त होती है तो उसका अंतर्मन से व्यथित हो जाना स्वाभाविक है। किंतु मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार किसान के इस आत्मीय दुख को समझ पा रही है, यह राजनीति का संतोषप्रद परिदृश्य है। यदि सभी सरकारें इसी तरह सोचने लग जाएं तो दावा किया जा सकता है की निकट भविष्य में ही खेती किसानी लाभ का धंधा बनने जा रहा है। केवल उम्मीद ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है की मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार किसानों का दुख और उसका आर्थिक नुकसान कम करने में अधिकतम सफलता प्राप्त करेगी।
लेखक – वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राघवेंद्र शर्मा