इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल में आज पंजाब की पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत पर आधारित विशेष प्रदर्शन का भव्य आयोजन किया गया। आवृति प्रांगण में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में संस्कृति–प्रेमियों, विद्यार्थियों, शोधार्थियों और स्थानीय पंजाबी–सिख समुदाय ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। मुख्य अतिथि पूर्व भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी सरबजीत सिंह, विशिष्ट अतिथि जितेन्द्र पाल सिंह गिल तथा अध्यक्षता संग्रहालय के निदेशक प्रो. अमिताभ पांडे ने की। कार्यक्रम का संचालन मुख्य लोक सूचना अधिकारी हेमन्त बहादुर सिंह परिहार ने किया।गुरुद्वारा हमीदिया रोड कमेटी के प्रधान परमवीर सिंह तथा गुरुद्वारा साकेत नगर के भूपिंदर सिंह भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।

मुख्य अतिथि सरबजीत सिंह ने कहा कि पंजाब की संस्कृति सदैव बहादुरी, भाईचारे और आध्यात्मिकता का आधार रही है। विशिष्ट अतिथि गिल ने कहा कि ऐसे आयोजन न केवल विरासत को संरक्षित करते हैं बल्कि समाज में एकता और सद्भाव को भी मजबूत बनाते हैं। संग्रहालय निदेशक प्रो. पांडे ने बताया कि संग्रहालय विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक परंपराओं को नई पीढ़ी के समक्ष जीवंत रूप में प्रस्तुत कर रहा है और इस बार पंजाब की समृद्ध संस्कृति को भोपाल में उतारा गया है।
कार्यक्रम का शुभारंभ गुरुद्वारा साहिब के रागी जत्थे द्वारा प्रस्तुत मधुर शबद कीर्तन “तुम करो दया मेरे साईं” से हुआ, जिसने पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। इसके बाद गुरुनानक स्कूल के बच्चों ने सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुत किया। तत्पश्चात सिख समुदाय की प्राचीन युद्ध–कला गतका का रोमांचक प्रदर्शन हुआ, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
विशेष प्रदर्शनी में पंजाब की ग्रामीण जीवन–शैली, कृषि परंपरा, घरेलू उपकरण, धार्मिक प्रतीक, लोक–वाद्य, परिधान और दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली 100 से अधिक विरासत–वस्तुओं का आकर्षक प्रदर्शन किया गया। संग्रहालय परिसर को पंजाब की रंगीन संस्कृति के अनुरूप सजाया गया, जिसमें झूले, पगड़ी–स्टॉल, पारंपरिक सेल्फी–पॉइंट और प्राकृतिक परिदृश्य दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बने। लोक–कलाकारों द्वारा प्रस्तुत गिद्धा और भंगड़ा ने पूरे माहौल को उल्लास और उत्सव में बदल दिया। दर्शकों ने कलाकारों के साथ नृत्य कर पंजाब की धड़कती संस्कृति को महसूस किया।
दर्शकों के लिए छोले चावल, कड़ी–चावल, राजमा–चावल, सरसों का साग, मक्के की रोटी, पिन्नी और मट्ठे जैसे पारंपरिक व्यंजनों की भी व्यवस्था की गई, जिन्हें भोपालवासियों ने अत्यंत पसंद किया। प्रदर्शनी स्थल को पंजाब के आध्यात्मिक परिवेश की अनुभूति के अनुरूप सजाया गया था, जहां सतत शबद–कीर्तन की ध्वनि दर्शकों को आध्यात्मिक विरासत से जोड़ती रही।
कार्यक्रम में स्थानीय पंजाबी समुदाय और विभिन्न शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों ने सक्रिय सहभागिता की। सांस्कृतिक संवाद और अनुभव–साझाकरण ने “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना को और प्रबल किया। जनसंपर्क अधिकारी हेमन्त बहादुर सिंह परिहार ने बताया कि इस आयोजन का उद्देश्य भारतीय सांस्कृतिक विविधता को जन–समुदाय तक पहुँचाना, पारंपरिक ज्ञान–प्रणालियों को नई पीढ़ी के सामने रखना और समुदाय आधारित सांस्कृतिक संवाद को मजबूत बनाना है।
पंजाब के स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद दर्शक रविवार 30 नवम्बर को दोपहर 12 बजे से शाम 6 बजे तक ले सकेंगे। पंजाब की लोक–संस्कृति पर आधारित यह विशेष प्रदर्शनी आगामी तीन महीनों तक आम दर्शकों के लिए खुली रहेगी।