इस बार की वसंत पंचमी असाधारण और ऐतिहासिक-डॉ राघवेंद्र शर्मा

इस बार की बसंत पंचमी कई मायनों में ऐतिहासिक और असाधारण साबित होने जा रही है। पहली बात तो सहज ही है कि बसंत पंचमी अपनी तिथि अनुसार तयशुदा समय पर हम सब मनाने जा रहे हैं। दूसरी खास बात यह है कि इसी दिन दुनिया के जाने-माने देश यूएई में सबसे बड़े हिंदू मंदिर का उद्घाटन हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं। तीसरी खास बात यह भी है कि इस बार वैलेंटाइन डे भी बसंत पंचमी के दिन ही मनाया जा रहा है। सबसे पहले बात करेंगे बसंत पंचमी की। हम सब जानते हैं यह पावन पर्व विद्या की देवी मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश विदेश के विद्या प्रतिष्ठानों में अथवा कौशल प्रशिक्षण केंद्रों में इस रोज मां सरस्वती की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। पीत वस्त्र धारण करना और इसी रंग के भोज्य पदार्थों का सेवन इस दिन शुभ और सुपाच्य माना जाता है। प्रकृति की दृष्टि से भी यह महापर्व काफी महत्व रखता है। जब सभी पेड़ पौधे और पर्यावरण पुराना आवरण त्याग कर नए-नए फूलों पत्तों से आच्छादित होते हो रहे होते हैं। टेसू के फूल सुर्ख लाल रंग अपनाकर अपनी सुगंध से वातावरण को महकाना शुरू कर देते हैं। जबकि मौसम हाड़ कंपा देने वाली सर्दी को त्याग कर एक ऐसे स्वरूप में ढल रहा होता है, जब ना ज्यादा सर्दी होती है और ना ही अधिक गर्मी का एहसास तन को सताता है। शिशिर और ग्रीष्म ऋतु के बीच इस पावन पर्व को बसंत ऋतु की शुरुआत के रूप में पूजा जाता है। इस प्रकार देखें तो वसंत पंचमी का पर्व प्राकृतिक और धार्मिक रूप से मनाया जाने वाला सनातन समाज का प्रमुख त्यौहार है। अब बात करेंगे भारतीय संस्कारों और संस्कृति के पुन: प्रकटीकरण की। जिसके तहत हम वह सब देखने जा रहे हैं जो अब तक केवल कहानियों की किताबों में, इतिहास और धर्म ग्रंथो में ही पढ़ने को मिल पा रहा था। उदाहरण के लिए- यूएई के अबू धाबी में सबसे बड़ा हिंदू मंदिर बनाया जाना और उसका उद्घाटन हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कर कमल से कराया जाना। यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस मंदिर के लिए सैकड़ो एकड़ जमीन वहां की सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई है। जबकि मंदिर को भारतीय कारीगरों द्वारा तराशा गया है और इसका उद्घाटन हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं। यह खास इसलिए है भी है, क्योंकि उक्त देश मुस्लिम शासकों द्वारा नियंत्रित सत्ता का केंद्र कहलाता है। फिर भी वहां हिंदू समाज का इतने बड़े मंदिर का निर्माण किया जाना और उसका उद्घाटन भारतीय प्रधानमंत्री के हाथों से कराया जाना यह प्रतिपादित करता है कि भारतीय उत्कर्ष अब दूसरे देशों की मान्यता प्राप्त करता दिखाई देता है। वर्ना पहले तो एक मुस्लिम देश में हिंदू मंदिर का निर्माण होना ही असंभव था, और फिर उस पर भारतीय प्रधानमंत्री के हाथों उसका उद्घाटन कराया जाना तो कल्पनातीत ही बना रहता। लेकिन यह हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की कार्य प्रणाली का ही नतीजा है कि अब भारत देश की संस्कृति और उसके संस्कार अनेक देश में उन्मुक्त भाव से प्रकट दिखाई देने लगे हैं। जहां तक देश की बात है तो हमारे यहां अनेक पुराने मंदिरों ने नया स्वरूप लेना प्रारंभ कर दिया है। उदाहरण के लिए अयोध्या के श्री राम मंदिर, उज्जैन के महाकाल लोक, ओंकारेश्वर के आदि शंकराचार्य जी का अत्यंत विशाल स्वरूप, द्वारका जी का आधुनिकीकरण, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर उल्लेखित किये जा सकते हैं। इनके अलावा भी अनेक धार्मिक, ऐतिहासिक, भारतीय गौरव के पुरातन चिन्हों का पुनरोद्धार किया जाना कार्य योजनाओं में साकार रूप लेता जा रहा है। लेकिन फिलहाल हम बसंत पंचमी के पर्व को स्पर्श करने हेतु उद्यमरत रहेंगे। जैसा कि मैने लेख के प्रारंभ में उल्लेख किया है कि यह बसंत पंचमी का पर्व अनेक मायनों में ऐतिहासिक और असाधारण है। उसके दो पहलू इस लेख में स्पष्ट कर चुका हूं। अब उसके तीसरे पक्ष पर चलते हैं। तीसरा पहलू यह है कि इस बार बसंत पंचमी के दिन ही वैलेंटाइन डे भी मनाया जा रहा है। जिसका प्रभाव एक सप्ताह पहले से ही बाजारों पर स्पष्ट दिखाई देने लगा है। उल्लेख करने की इसलिए आवश्यकता है, क्योंकि वैलेंटाइन डे मनाने का तौर तरीका भारतीय संस्कृति से कतई मेल नहीं खाता। इसे मानने वाले लोग वैलेंटाइन डे को केवल और केवल इश्क मोहब्बत के आवरण में मौज मस्ती तक ही समेट कर रखना चाहते हैं। जबकि ऐसा किया जाना उस व्यक्तित्व के साथ अन्याय किया जाना है, जिसकी स्मृति में यह दिवस मनाया जाता है। सब जानते हैं कि रोम के एक पादरी संत वैलेंटाइन को मृत्यु दंड दिए जाने की स्मृति को चिरकाल तक बनाए रखने हेतु यह दिन मनाया जाता है। अव्वल तो यह शोक मनाने का विषय है। क्योंकि 270 ईस्वी में क्लॉडियस नाम का शासक क्रूर और विस्तारवादी नीतियों के लिए बदनाम था। उसने रोम की सेना में शामिल सैनिकों के विवाह पर प्रतिबंध लगा रखा था। वह मानता था कि शादीशुदा व्यक्ति सेना में रहकर देश की सेवा एकाग्र भाव से नहीं कर सकता। इस अनुचित और गैर प्राकृतिक निर्णय का वहां के एक पादरी वैलेंटाइन निरंतर विरोध करते रहते थे। एक आंदोलन के रूप में उन्होंने रोम के सैनिकों की शादियां भी अपने चर्च में भारी पैमाने पर कराईं। जब यह बात क्लाउडियस को पता चली तो उसने वैलेंटाइन को मृत्युदंड की सजा सुना दी। यही वह दिन है जब दुनिया के कई हिस्सों में वैलेंटाइन डे मनाया जाने लगा। जाहिर है वैलेंटाइन को यह यश कीर्ति वैवाहिक संस्था को समाज में अक्षुण्ण बनाए रखने के एवज में प्राप्त हुई। जहां तक भारत की बात है तो वह भी विवाह नाम की सामाजिक संस्था में अपनी आस्था और विश्वास गहरे तरीके से रखता है। इसका किसी भी स्तर पर विरोध किया जाना ना तो सहज है और ना ही स्वीकार्य। फिर भी वैलेंटाइन डे का विरोध होता है तो इसका प्रमुख कारण यह है। क्योंकि इस दिन संत वैलेंटाइन के प्रति श्रद्धा व्यक्त किए जाने से उलट लोग इसे मौज मस्ती का त्योहार बन चुके हैं। खासकर युवक युवतियां इस दिन होटलों, रेस्टोरेंटों, बगीचों, सुनसान इलाकों में कथित रूप से प्रेम निवेदन करते दिखाई देते हैं। कई कई बार तो इन जोड़ों को बेहद आपत्तिजनक अवस्था में देखा जाता है। बस यही वजह है कि वैलेंटाइन डे के तौर तरीकों पर विरोध देखने को मिल जाता है। जबकि इस त्यौहार में अपना मुनाफा देखने वाले कुछ बुद्धिजीवी और मुनाफाखोर प्रवृत्ति के व्यवसायी इसे वैलेंटाइन डे का विरोध करार देने लगते हैं। भारतीय संस्कृति के दमन का विरोध करने वालों को प्रेम मोहब्बत का दुश्मन बताया जाने लगता है। जबकि सर्व विदित है कि प्रणय निवेदन भारतीय संस्कारों में पूर्व से ही रचा बसा हुआ है। इसे हम झाबुआ क्षेत्र के भगोरिया पर्व में बेहद खुले वातावरण में देख सकते हैं। लेकिन उस पर्व के पीछे भी मंशा पवित्र और विवाह के संदर्भ में की गई कर्तव्य परायणता ही होती है। लिखने का आशय यह कि भारतीय सभ्यता में किए जाने वाले प्रणय निवेदन को केवल मौज मस्ती तक सीमित नहीं देखा जाता। सनातनी परंपरा इसे विवाह के रूप में परिणीत होते देखती आई है। वैलेंटाइन डे की आड़ में इसके उलट आचरण किया जाना दिखाई ना देता तो शायद ही कोई इसका विरोध करता।

कुल मिलाकर वसंत पंचमी के पावन पर्व पर हम सभी को भारतीय और भारतीयता के प्रति कृत संकल्पित होने की आवश्यकता है। आधुनिकता की दृष्टि से भी देखें तो बसंत पंचमी और वसंत ऋतु में भी वह सब शाश्वत रूप से समाहित है, जो विकृत स्वरूप में पश्चिमी सभ्यता को उत्कृष्ट दिखाई देता है। अतः हम सब मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस के पावन पर्व पर भारतीय संस्कारों और संस्कृति का सम्मान करने हेतु प्रण ठानें। यदि युवा वर्ग इसे संकल्प के रूप में धारण करता है तो भारतीय सभ्यता का अनुसरण प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से दुनिया के दूसरे देश करने में जुट गए हैं, उसे और अधिक गति प्रदान की जा सकेगी। सभी देशवासियों को बसंत पंचमी पर्व की अनेक अनेक बधाइयां।

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