मध्य प्रदेश शासन की कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस बात पर जोर दिया कि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हर घर तिरंगा फहराया जाना सुनिश्चित किया जाएगा। इसके लिए सरकार और जनप्रतिनिधि मिले-जुले प्रयास करेंगे। इससे प्रदेश वासियों के मन मस्तिष्क में देश प्रेम और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति निष्ठा की भावना और अधिक पुष्ट होगी। तभी कांग्रेसी नेताओं का बयान आ गया कि भारत में भी बांग्लादेश जैसे हालात बन सकते हैं। जनता यहां भी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के आवासों में घुस जाएगी। यह सुनकर बड़ा अजीब लगा । काफी देर तक यह विश्वास ही नहीं हुआ कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता भारत को लेकर इतना निम्न स्तरीय और अनिष्टकारी बयान भी दे सकते हैं! इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि एक ओर शासन धार्मिक त्योहारों व स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ को और अधिक उत्साह के साथ मनाने की मंशा प्रकट कर रहा है। वहीं विपक्ष की बयान बाजी देश को लेकर अपने मन में एक ऐसा खाका खींचकर बैठी है, जहां केवल और केवल बर्बादी का आलम ही नजर आता है। पहले बात मध्य प्रदेश शासन की कैबिनेट बैठक को लेकर करते हैं, इसमें बहुत सारे मुद्दे आए।
किसानों के खेत और जमीनों के नामांतरण को सहज सरल बनाए जाने को लेकर बात हुई। लाडली बहन की बेहतरी पर विचार विमर्श हुआ। ग्रामीण स्तर पर जनजीवन में सुधार लाए जाने के मसले पर मोहर लगी। कैबिनेट संचालन की कर्रवाई पेपरलेस तरीके से किए जाने पर मोहर लगी। जेल में बंद जिन कैदियों ने सदाचार और सद्व्यवहार अपनाया उनकी रिहाई मंजूर हुई। चूंकि प्रदेश के मुख्यमंत्री जी की इच्छा है इसलिए जन्माष्टमी भी कुछ अलग अंदाज में मनेगी, यह भी निश्चित किया गया। आदिवासी बालक बालिका छात्रावासों में सुविधाएं बढ़ाने टीम का गठन होगा और सुधार के लिए फंड भी दिया जाएगा। यह भी तय हुआ कि आपातकाल का विरोध करते हुए जेल में बंद रहे सेनानियों के सम्मान में इजाफा होगा। सबसे प्रमुख फैसला यह हुआ कि 15 अगस्त तक हर घर तिरंगा फहराया जाए, इस आशय की तैयारियां आज से ही जोर पकड़ने जा रही हैं। कुल मिलाकर कैबिनेट के फैसले यह मंशा जाहिर करते हैं कि आने वाला समय जन साधारण के लिए और अधिक सकारात्मक तथा सुविधाजनक रहेगा। आने वाले त्यौहार और अधिक उत्साह के साथ मनाए जाएंगे। अभी इन निर्णयों को शाब्दिक रूप दिया ही जा रहा था कि राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के कांग्रेसी नेताओं के बयान आ गए। उनके द्वारा कहा गया कि बांग्लादेश में जो हाल शेख हसीना सरकार का हुआ है, जैसे वहां की जनता प्रधानमंत्री निवास में घुस गई और लूटपाट मचा दी, वैसा ही हाल भारत में भी हो सकता है।
कांग्रेसी नेताओं ने यहां तक कह दिया कि जनता प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति निवासों को निशाना बना सकती है। इस मानसिकता की जितनी निंदा की जाए कम है। क्योंकि अपने देश के बारे में इस तरह की अनिष्टकारी कल्पनाएं की जाना और बेहद नकारात्मक बयान बाजी करना कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता। वैसे भी बांग्लादेश और भारत के हालातों में जमीन आसमान का अंतर है। यदि बांग्लादेश की बात की जाए तो वहां जिस उपद्रव को स्थानीय जनता का आंदोलन बताया जा रहा है, दरअसल वह चीन और पाकिस्तान की साजिश का एक हिस्सा मात्र है। यदि आंदोलन का आधार शेख हसीना की तानाशाही होती तो उनके देश से निकलते ही उपद्रव भी शांत हो जाना था, जो अभी तक जारी है। दूसरी बात, बांग्लादेश की सड़कों पर जो हो हल्ला मचाया जा रहा है वह पाकिस्तान में स्थापित जमायत ए इस्लाम की छात्र विंग “शिविर” द्वारा प्रेरित है। यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि वहां की सेना ने अपने ही देश की प्रधानमंत्री के साथ विश्वास घात किया है। यही नहीं, बांग्लादेश को बर्बाद करने के लिए भारी पैमाने पर विदेशी फंड खपाए जाने की बात खुलकर सामने आ चुकी है। जबकि भारत की आवो हवा एकदम दूसरी तरह की है। मसलन- भारत आर्थिक और सामरिक दृष्टि से पूरी तरह आत्मनिर्भर देश है। यहां की जनता भी बेहद अमन पसंद और लोकतंत्र की हिमायती है। इसका उदाहरण कुछ इस प्रकार दिया जा सकता है।
यदि अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो देश की विभिन्न सरकारों पर तानाशाही भ्रष्टाचार और चुनावों को प्रभावित करने के आरोप लगते रहे हैं। इस सबके बावजूद भारतीय जनता और खासकर युवाओं ने कभी भी व्यापक पैमाने पर उपद्रव का सहारा नहीं लिया। इन सभी ने आवश्यकता पड़ने पर लोकतांत्रिक तरीके से विरोध दर्ज कराया और कई बार सरकार को अपने निर्णय बदलने के लिए मजबूर कर दिखाया। यहां तक कि 25 जून 1975 को संविधान की हत्या करते हुए देश में इमरजेंसी लागू कर दी गई। तत्कालीन सरकार ने सारे विरोधी नेता जेलों में ठूंस दिए। मीडिया पर अघोषित सेंसरशिप लगा दी। सरकार की आलोचना करने का अधिकार जनता से छीन लिया। लोगों को पकड़ पकड़ कर नसबंदी के लिए मजबूर किया जाता रहा। चकबंदी और हदबंदी के नाम पर निजी खेतों मकानों जमीनों पर आशंकाएं खड़ी कर दी गईं। फिर भी जनता ने धैर्य नहीं छोड़ा। बेहद विसंगति पूर्ण जीवन जीते हुए भी लोकतांत्रिक तरीके से जन आंदोलन खड़े किए गए और अंततः 1977 को लोकतांत्रिक तरीके से ही तब की इंदिरा सरकार को धूल धूसरित कर दिखाया। कारण स्पष्ट है, किसी भी बाहरी अथवा शत्रु देश के षड्यंत्र हमारे नागरिकों के मन मस्तिष्क को स्पर्श तक नहीं कर पाए। हां यह माना जा सकता है कि जब सीएए, यूसीसी, एनआरसी और कृषि सुधार जैसे कानून भारतीय संसद में पेश हुए तो कुछ लोगों ने मर्यादाओं को पार किया था।
कुछ अप्रिय दृश्य ऐसे बने थे, जो हमारे शत्रु देशों को रास आ रहे थे। लेकिन यह भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का ही कमाल है कि ऐसे देश विरोधी तत्व अंततः असफल साबित हुए। आगामी चुनाव में पुरानी सरकार को दुहराकर देशवासियों ने यह संदेश दे दिया कि भारत में शत्रु देश के इशारों पर षड्यंत्र रचने वाले मुट्ठी भर लालची और अवसरवादी लोग कभी सफल नहीं हो सकेंगे। यह तो जनता की बात हुई, अब भारतीय सेना की बात करते हैं। हमारे देश की सेना कई मायनों में दुनिया से अलग है। यह बहादुर होने के साथ-साथ देशभक्त भी है। उसे कोई मतलब नहीं कि देश पर किस पार्टी का नेता राज कर रहा है। ध्येय केवल इतना सा है कि हमारी सेना को देश के लिए जीना और देश के लिए मरना बखूबी आता है। वैश्विक मानचित्र पर ऐसी कोई ताकत पैदा हुई ही नहीं, जो हमारी सेना को रत्ती भर दिग्भ्रमित कर सके। जहां तक विदेशी ताकतों की बात है तो उनके द्वारा भारत को हर तरीके से आहत किए जाने के सभी प्रकार के प्रयास किये जा चुके हैं। कभी-कभी उन्हें आंशिक सफलताएं भी मिलीं। लेकिन आज का भारत बेहद आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी भारत है। हमारा देश किसी को कभी नहीं छेड़ता, यह उसका पुरातन स्वभाव है। लेकिन यदि कोई छेड़ेगा तो हम उसे नहीं छोड़ेंगे, यह नए भारत का नया तेवर है।
लिखने का आशय यह कि विपक्ष को यदि सत्ता पक्ष की निंदा करना ही है, तो उसे सत्ता पक्ष की जाने अनजाने की गई गलतियों का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए। उन गलतियों को जनता के बीच ले जाकर सरकार को आईना दिखाने का काम करना चाहिए। ना कि ऐसी बयान बाजी करनी चाहिए, जिसमें भारत की एकता अखंडता और संप्रभुता को लेकर शंकाएं खड़ी की जाएं।
लेखक – मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं