वेदों में वर्णित गुरु महिमा: आलोक शर्मा,सांसद

“गुरुपूर्णिमा पर विशेष”

आज दुनियां के कोने-कोने में गुरूपूर्णिमा का पर्व उत्सवी माहौल में मनाया जा रहा है। एक शिष्य के नाते अपने गुरू के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का यह बडा अवसर है। मैं सौभागयषाली हूॅ, मैं भी अपने गुरू स्थान पर गुरूवर के पूजन-वन्दन के लिए पहुंचा हूं। आप सब भालीभांति जानते हैं भारत संस्कृति और परंपराओं को मानने वाला देश है। पर्व और उत्सवों को मनाने वाला देश है। शास्त्रों में गुरू का महत्व भगवान से बढकर बताया गया है। गुरू के बिना व्यक्ति का जीवन अंधकारमय होता है। आज जो गुरुओं की सेवा में लगे हैं उनका जीवन सार्थकता की सिद्धि हासिल करेगा। सनातन धर्म में गुरु की महिमा है। ब्रह्मा से भी ऊपर गुरु का स्थान बताया है। युगों की बात करें तो त्रेता युग और द्वापर में गुरु-शिष्य परंपरा प्रगाढ़ रही है। गुरूकुल ज्ञान, अस्त्र-शस्त्र, विभिन्न विधाओं और कलाओं में पारंगत बनाने के केन्द्र हुआ करते थे। गुरु की आज्ञा से ही सारे काम संपन्न हुआ करते थे। हमारे वेदों, पुराणों, उपनिषदों, रामायण एवं गीता आदि में तो विशेष रूप से गुरु की महिमा का गुणगान किया गया है। माता-पिता जन्मदाता हैं। लेकिन गुरू ज्ञान का भंडार होता है। जन्म के उपरांत शिक्षा गुरु ही देता है। सीखने के लिए शिष्य बनना पडता हैं। गुरु अपने शिष्यों के जीवन को गढ़ता है। क्या उचित है क्या अनुचित। एक विद्यार्थी के लिए शिक्षक ही सबकुछ होता है। इसलिए गुरू के सम्मान में विद्यार्थियों को कतई कमी नहीं रखनी चाहिए। शिक्षक गुरूकुल, स्कूलों में बिना भेदभाव के शिक्षा प्रदान करते हैं। वे ज्ञान का बोध और जीवन में मार्गदर्शन देने वाला भी गुरु होता है। यही नहीं गुरू शिष्य के जीवन के संरक्षक भी होते हैं। शिष्य के जीवन में कौन सा मार्ग ठीक होगा वही दिशा देते है। हमारा प्राचीन गौरवशाली इतिहास गुरु और शिष्य संबन्धों से ओतप्रोत है। ग्रंथ में वर्णित है कि गुरुजनों की सेवा करने वाले लोगों के जीवन में अभाव नहीं रहता। गुरू ही होता है जो शिष्य के जीवन में हर मोड़ पर मार्गदर्शन करता है, सफलता की कामना करता है। बात चाहे बाल्यकाल में शिक्षा प्राप्ति की हो अथवा सांसारिक जीवन में आने वाली चुनौतियों से निपटने की। गुरु अपने शिष्य के लिए शिक्षा, संस्कार के साथ ही मोक्ष का मार्ग तक प्रशस्त करते है। गुरू सदमार्ग दिखाता है, इसलिए हम हमेशा पहले अपने गुरु के चरण कमलों की वंदना करते हैं। गुरु के बिना कोई भवसागर पार नहीं कर सकता। जीवन सद्गुरु का होना बहुत जरूरी है। जिससे भी हम ज्ञान प्राप्त करते हैं वह गुरु है। हर वह व्यक्ति गुरु कहलाने के योग्य है, जिससे हमें शिक्षा प्राप्त होती है। यानी जो हमें अपने ज्ञान के माध्यम से गलत कार्यों, गलत आचरण से रोके, वह गुरु है। गुरु अपने शिष्य के लिए शिक्षा, संस्कार के साथ ही मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री डाॅ. मोहन यादव की सरकार ने पहल की है, अब कुलपति, कुल गुरू कहलाएंगे। विशेष बात है कि आज पूरे प्रदेश में कुल गुरूओं, शिक्षकों का सम्मान हो रहा है। सभी गुरूओं को मेरा सादर नमन।

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